धर्म निष्ठ, धर्म प्रेमियों,
श्री बांके बिहारीजी की असीम अनुकम्पा से मंगलमय, कल्याणात्मक, आनन्दमय, शुभ कार्य अवसर पर " श्री बांके बिहारी सेवा संस्थान" एवं इस्ट मित्रों सहित करूणा एवं निवेदन पूर्वक संस्था के और समाज के कल्याण हेतु "संचालन सदस्य" के रूप में आपको आमंत्रित करते हुए "श्री बांके बिहारी सेवा संस्थान" गौरवान्वित होगी। अतः आशा है कि "भगवान श्री बांके बिहारी" द्वारा दी गई पद की गरिमा और ट्रस्ट के विकास के सभी क्षेत्र में सहृदय रूपी कार्य सम्पादन करेंगे।

सुनील कुमार ठाकुर
संस्थापक (अध्यक्ष)

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शुभकामना संदेश
जगदम्बा पार्वती एवं जगत् जननी सीता जी की भूमि मिथिला की हृदयस्थली दरभंगा शहर प्रमुख आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केन्द्र है। शिक्षा व आध्यात्म के क्षेत्र मे दरभंगा व बेनीपुर "श्री बांके बिहारी सेवा संस्थान" द्वारा ऐतिहासिक धार्मिक स्थल मझौड़ाधाम "श्री श्री 108 श्री सुदर्शन महायज्ञ" धार्मिक दृष्टि से दर्शनीय, अविस्मरणीय तथा आत्मीय था, "श्री बांके बिहारी सेवा संस्थान" द्वारा आयोजनों के बूते राष्ट्रीय क्षितिज पर जगह बना लिये है। मानव कल्याण के उद्देश्य से आयोजित "श्री श्री 108 श्री सुदर्शन महायज्ञ से दस दिनों तक मझौडाधाम ही नहीं बल्कि पूरे मिथिलांचल में उत्सवी माहौल बना हुआ था, साथ ही "मुरलीधर पत्रिका ने दूर-दूर तक रहने वाले धर्मप्रचारक भक्तों को मिथिला की महता एवं कृष्ण की शक्ति और भक्ति की जानकारी देगी। स्मारिका के रूप में शक्ति और "गो" रक्षा करने के लिए संपादक मंडल, आयोजक मंडल, न्यास समिति को हमारी विशेष शुभकामना है। श्री बांके बिहारी जी के चरणों में कोटि-कोटि नमन।

संजय कुमार ठाकुर
(कोषाध्यक्ष)

शरणागति-धर्म
जीवन और जगत् की सत्ता दो रुपो में देखी जाती है-एक व्यावहारिक दूसरी परमार्थिक। इसी तरह धर्म के भी दो रूप देखे जाते हैं संसार अथया देहधर्म अथवा परमधर्म। घृ धारणे धातु से धर्म शब्द बनता है। जिसका अर्थ धारण करने योग्य अथवा धारण करने वाला होता है। धारणाद्ध धर्ममित्याह धर्मो धारयते प्रजा।" धर्म वह शक्ति है जिसके बिना जीवन जिया नहीं जा सकता है कदाचित् अन्न-जल के बिना हम रह सकते, पर धर्म के बिना नहीं। संसार या देह धर्म के पालन करने से जीवन एवं जगत् चलता है, किन्तु परम धर्म के द्वारा मानव जीवन के परम साध्य परमात्मा तत्व की प्राप्ति होती है। संसारिक धर्म से भी एक सार्वभौम धर्म होता है जिसे मानव धर्म कहते हैं। इसका प्रति-पादन करते हुए गोस्वामी जी ने कहा "परहित सरिस धरम नही भाई पर पीड़ा सम नहि अधमाई। स्वभाविक रुप में किसी का उपकार करना बड़ा धर्म है और अपकार करना ही अधर्म है। आज के दौड़ में कम से कम मनुष्य इतना भी सोच ले कि हम किसी का भला करें या न करे किंतु बुरा न करे तो भी मानव धर्म की रक्षा होगी और अच्छे समाज का निर्माण होगा। मागवत के अन्दर एक ऐसे धर्म का प्रतिपादन किया गया है. जो सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक के रुप मे सार्वभौम धर्म है। जैसे संसार एवं मानव का शरीर साक्ष्य नहीं साधन मात्र है उसी तरह देह एवं लौकिक धर्म मात्र साधन ही माना गया है। परम धर्म भागवत धर्म के द्वारा ही साध्य की प्राप्ति की जा सकती है। भागवत के प्रारम्भ में ही परमधर्म का परिचय देते हुए व्यासदेव ने लिखा "स ते पूसां परोधर्मः यत्तो भक्ति रथोक्षत्र" अर्थात् परमधर्म वही कहलाता है जिसके पालन एवं अपनाने से परमात्मा की प्राप्ति होती है। चौरासीलाख योनियों में मानव शरीर ही एक ऐसा सर्वोत्तम सोपान है जिसके द्वारा जन्म-मरण के चक्कर से अत्यंतिक निवृति द्वारा परमपद कि प्राप्ति की जा सकती है। भागवत में मुख्य रूप से दो बातें कही गई स्वार्थ रहित भक्ति एवं निष्कष्ट धर्म का प्रतिपादन। कहा गया है कि "धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः श्री कृष्ण ने गीता में उपदेश देते हुए अर्जुन से कहा कि सर्व धर्मान् परित्यज्य मामेक शरणं व्रज भागवत के अनुसार प्रभु की शरणागति ही परमधर्म कहलाता है और मानव समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। संसार के प्रत्येक मनुष्य का कल्याण धर्म के पालन में सुनिश्चित है। जिससे धर्म रहित जीवन पशु के सामान होता है। अतः प्रत्येक मनुष्य को धर्म पालन करते हुए धार्मिक वृत्ति का होना चाहिए। वैसे भी भारतवर्ष ऋषियों की भूमि, धर्म प्रधान ही है।

कुंज बिहारी मिश्र
(सचिव)

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