हम गर्व के साथ सूचित करते हैं कि श्री वांके बिहारी सेवा संस्थान के तत्वावधान में मंदिर का निर्माण कार्य सफलतापूर्वक संपन्न हो चुका है। यह पवित्र स्थल अब श्रद्धालुओं के लिए खुला है और भक्ति, सेवा व आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक बन गया है।
श्री वांके बिहारी सेवा संस्थान का उद्देश्य समाज में आध्यात्मिक जागृति फैलाना, धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देना तथा सेवा कार्यों के माध्यम से समाज के सभी वर्गों को एकजुट करना है।
इस पुनीत कार्य में सहयोग देने वाले सभी श्रद्धालुओं, दानदाताओं और कार्यकर्ताओं का हार्दिक आभार। आपकी निःस्वार्थ सेवा और समर्पण से यह कार्य संभव हो पाया है।
आप सभी से अनुरोध है कि मंदिर परिसर में पधार कर श्री वांके बिहारी जी के दर्शन करें और इस दिव्य अनुभव का लाभ उठाएं।
जय श्री वांके बिहारी जी!
सेवा में, श्री वांके बिहारी सेवा संस्थान
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श्री वांके बिहारी सेवा संस्थान का 'बाटर प्रोजेक्ट' समाज के उन क्षेत्रों में स्वच्छ पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए समर्पित है, जहां लोग अब भी पेयजल की समस्या से जूझ रहे हैं। हमारा उद्देश्य न केवल स्वच्छ जल प्रदान करना है, बल्कि जल संरक्षण और जागरूकता के माध्यम से समुदायों को आत्मनिर्भर बनाना भी है।
हर व्यक्ति को स्वच्छ पेयजल तक पहुंच का अधिकार है। हम इस मिशन के माध्यम से न केवल समुदायों के स्वास्थ्य को सुरक्षित कर रहे हैं बल्कि उनके जीवन स्तर को भी बेहतर बना रहे हैं।
श्री वांके बिहारी सेवा संस्थान के "रेडिमेड एंड गारमेंट प्रोजेक्ट" का उद्देश्य समाज के वंचित और जरूरतमंद वर्गों को नए एवं उपयोगी कपड़े उपलब्ध कराना है। इस पहल के तहत हम उन लोगों की मदद करते हैं जिनके पास पर्याप्त साधन नहीं हैं कि वे खुद के लिए गरिमामय वस्त्र जुटा सके।
हर व्यक्ति को गरिमा और आत्मसम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार है। हम न केवल जरूरतमंदों को कपड़े उपलब्ध कराते हैं बल्कि आत्मनिर्भरता और सामुदायिक विकास को भी प्रोत्साहित करते हैं।
हम आपकी मदद से इस मिशन को और प्रभावशाली बना सकते हैं। आपकी छोटी-सी मदद से किसी के चेहरे पर मुस्कान लाई जा सकती है।
आपकी सहायता से किसी के जीवन में बदलाव की नई उम्मीद जगाई जा सकती है। आइए, इस नेक पहल में हमारे साथ जुड़ें।
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सांझा चूल्हा एक लोकप्रिय सांस्कृतिक प्रथा है जो विशेष रूप से ग्रामीण भारत में देखी जाती
है। यह एक सामाजिक पहलू है जिसमें कई परिवार या समुदाय एक साथ मिलकर भोजन तैयार करते हैं और
खाते हैं। यह प्रथा सामाजिक एकता और सहयोग की भावना को बढ़ावा देती है।
सांझा चूल्हे का विचार यह है कि लोग अपने घरों में खाना बनाने की बजाय एक स्थान पर
एकत्र होकर मिलजुल कर खाना पकाते हैं। इस प्रथा के दौरान, लोग न केवल भोजन का आदान-प्रदान
करते हैं बल्कि एक-दूसरे से संवाद करते हुए सामाजिक रिश्ते भी मजबूत करते हैं।
यह प्रथा खासकर त्योहारों या विशेष अवसरों पर अधिक प्रचलित होती है। इससे न केवल
खाना
पकाने का काम साझा होता है, बल्कि यह लोगों के बीच भाईचारे और परस्पर सहयोग की भावना भी
उत्पन्न करता है।
सांझा चूल्हे का संबंध भारतीय ग्रामीण जीवन की सरलता, सहनशीलता और एकता से है। यह
समाज
में समरसता और सहयोग की भावना को बढ़ावा देने वाला एक महत्वपूर्ण पहलू है।